धर्मः इस बार अधिमास होने के कारण चतुर्मास चार महीने का नहीं बल्कि पांच महीने का हो गया है। इन पांच महीनों के बाद जब विष्णु भगवान जागेंगे तो उसे ‘देवउठनी एकादशी’ कहा जाएगा और उस दिन से बाद से वापस मांगलिक काम प्रारंभ हो जाएंगे।
चतुर्मास के दिनों में सृष्टि की रक्षा भगवान शिव के हाथ में होती है। इन महीनों में पूजा-पाठ किया जाता है और जो कोई भी ऐसा करता है उसे सुख-शांति के साथ-साथ मोक्ष की भी प्राप्ति होती है। ‘देवशयनी एकादशी’ की पूजा पूरे मन और आस्था के साथ करनी चाहिए। जो कोई भी भगवान विष्णु की पूजा इस दिन सच्चे मन से करता है उसकी तरक्की होती है और उस पर मां लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है।
देवशयनी एकादशी पर क्या करें?
किसी से झगड़ा ना करें। किसी की निंदा ना करें। मासांहारी भोजन और मदिरापान ना करें। तुलसी में जल ना चढ़ाएं क्योंकि तुलसी माता को मां लक्ष्मी का ही अवतार माना जाता है इसलिए वो इस दिन निर्जला व्रत रखती है इसलिए उन्हें जल चढ़ाकर उनका व्रत ना तोड़ें। इस दिन दातुन करने से भी बचे, वरना कर्जा चढ़ सकता है। एकादशी के दिन चावल का सेवन ना करें और ना ही इसे दान करें वरना आर्थिक कष्ट हो सकता है। ब्रह्मचर्य का पालन करें और स्त्री प्रसंग से दूर रहें। क्या करें प्रसाद में विष्णु जी को तुलसी दल भी चढ़ाएं इससे भगवान प्रसन्न होते हैं। गरीबों को दान दें। ब्राहम्णों को भोजन कराएं। ईश्वर का भजन करें। विष्णु जी के साथ-साथ मां तुलसी और लक्ष्मी जी की भी पूजा करें।
देवशयनी एकादशी पूजा मुहूर्त एकादशी तिथि का आरंभ: 29 जून को सुबह 3 बजकर 18 मिनट AM एकादशी तिथि का अंत: 30 जून को दोपहर 2 बजकर 42 मिनट PM देवशयनी
एकादशी व्रत का लाभ
देवशयनी एकादशी व्रत करने से इंसान के सारे पापों का नाश होता है। इंसान सुखी, स्वस्थ और खुश रहता है। इंसान को मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। इंसान तो यश, बल और धन भी प्राप्त होता है। उसका घर-आंगन हमेशा खुशियों से भरा और संपन्न रहता है।