नवरात्र का पहला दिन मां शैलपुत्रि के नाम, जानें माता से जुड़ी पौराणिक महत्ता 

चैत्र नवरात्र 2025: नवरात्र रविवार 30 मार्च से शुरू हो रहे हैं। नवरात्र के 9 दिन भक्ति और साधना के लिए बहुत पवित्र माने गए हैं। इसके पहले दिन माता के शैलपुत्री स्वरुप की पूजा की जाती है। शैलपुत्री हिमालय की पुत्री हैं। हिमालय पर्वतों का राजा है। वह अडिग है, उसे कोई हिला नहीं सकता। जब हम भक्ति का रास्ता चुनते हैं तो हमारे मन में भी इसी तरह का अडिग विश्वास होना चाहिए, तभी हम अपने लक्ष्य तक पहुंच सकते हैं। यही कारण है कि नवरात्र के पहले दिन शैलपुत्री की पूजा की जाती है।

मां शैलपुत्री की पौराणिक कथा

मां शैलपुत्री सती के नाम से भी जानी जाती हैं। एक बार प्रजापति दक्ष ने यज्ञ करवाने का फैसला किया। इसके लिए उन्होंने सभी देवी-देवताओं को निमंत्रण भेज दिया, लेकिन भगवान शिव को नहीं। देवी सती भलीभांति जानती थी कि उनके पास निमंत्रण आएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वो उस यज्ञ में जाने के लिए बेचैन थीं, लेकिन भगवान शिव ने मना कर दिया।

उन्होंने कहा कि यज्ञ में जाने के लिए उनके पास कोई भी निमंत्रण नहीं आया है और इसलिए वहां जाना उचित नहीं है। सती नहीं मानीं और बार-बार यज्ञ में जाने का आग्रह करती रहीं। सती के न मानने पर शिव को उनकी बात माननी पड़ी और इसकी अनुमति दे दी। सती जब अपने पिता प्रजापति दक्ष के यहां पहुंची तो माता को छोड़कर कोई भी उन्हें स्नेह देता नहीं दिखा। अपने पति भगवान शिव का तिरस्कार देख सती ने उसी यज्ञ की अग्नि में खुद को स्वाहा कर अपने प्राण त्याग दिए। भगवान शिव को जैसे ही इसके बारे में पता चला तो दुख और गुस्से की ज्वाला में जलते हुए शिव ने दक्ष यज्ञ का विध्वंस कर दिया। सती ने हिमालय के यहां जन्म लिया और मां का नाम शैलपुत्री पड़ा।

कहा जाता है कि नवरात्र के पहले दिन यानि प्रतिपदा को जो भी भक्त मां शैलपुत्री के दर्शन करता है उसके सारे वैवाहिक जीवन के कष्ट दूर हो जाते हैं। चूंकि मां शैलपुत्री का वाहन वृषभ है इसलिए इन्हें वृषारूढ़ा भी कहा जाता है। इनके बाएं हाथ में कमल और दाएं हाथ में त्रिशूल रहता है।