शिष्य का ‘अनुशासन’ ही गुरु की ‘प्रसन्नता’ का ‘आधार’: भारती

देहरादून: निरंजनपुर स्थित ‘दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान’ के आश्रम सभागार में रविवारीय साप्ताहिक सत्संग-प्रवचनों एवं मधुर भजन-संर्कीतन के कार्यक्रम का आयोजन हुआ। संस्थान के संस्थापक एवं संचालक ‘सदगुरू आशुतोष महाराज’ की शिष्या साध्वी भक्तिप्रभा भारती ने प्रवचन करते हुए बताया कि पूर्ण गुरू ब्रह्मज्ञान प्रदान कर और भगवान से मिलाकर मानव जीवन के लक्ष्य को पूर्ण करने का सामर्थ्य रखते हैं। शिष्य को पूर्ण रूप से गुरू आज्ञा में चलने पर ही भक्ति का रंग चढ़ पाता है। भक्ति मार्ग में शिष्य का अनुशासन ही गुरू को प्रसन्न करता है। भक्त कहलाना एक बात है और भक्त बन जाना अहम बात है। गुरु की दृष्टि सर्वव्यापी हुआ करती है और गुरु की आज्ञा एक सुरक्षा कवच है। शिष्य का अपना कोई अस्तित्व, कोई वजूद जब तक बाकी है तब तक गुरु की कृपा भी बाकी रहती है। जिस दिन शिष्य शून्य हो गया उस दिन समझो वह पूर्ण रूप से पूर्ण गुरु का हो गया। गुरु पर विश्वास भवसागर में मांझी की तरह है और गुरु से अलग शिष्य का अपना कोई जीवन भी नहीं है। गुरु के साथ शिष्य का प्रेम उसे संसार सागर से उबार कर अमर कर देता है। अमीर खुसरो कहते हैं- ‘खुसरो दरिया प्रेम का, जाकी उल्टी धार, जो उभरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार।’

कार्यक्रम में अनेक सुन्दर भजनों का गायन भी किया गया। भजनों की व्याख्या में साध्वी विदुषी सुभाषा भारती जी ने बताया कि भगवान से जुड़ने का सशक्त माध्यम सत्संग ही है। भगवान श्री कृष्ण संत और सत्संग की महिमा पुरजोर स्वर में गाते हैं। संत का कार्य ही है संतप्त आत्माओं को प्रभु दर्शन और प्रभु की प्राप्ति करवा देना। सत्संग-प्रवचनों से ही सत्संग अर्थात सत्य का संग हो पाता है। सत्य केवल परमात्मा है और उनका संग कर लेना प्रत्येक आत्मा का प्रथम और अंतिम सत्य ही है। जीवन की सार्थकता इसी में है कि गुरू की आज्ञा में सदा चलते ही रहें। गुरू से बड़ा कोई देव नहीं। समस्त देवी-देवताओं का निवास तथा अड़सठ तीरथ और सारे धाम सदगुरू के चरण कमलों में ही मौजूद हुआ करते हैं। परम गुरू की भक्ति को प्राप्त करने वाला कोई साधारण शिष्य नहीं होता। ईश्वर को देखकर, उन्हें जानकर की गई भक्ति ही जीव को भवसागर से पार लगा देती है। सदगुरू प्रदत्त ‘ब्रह्मज्ञान’ सम्पूर्ण मानव समाज के लिए ठीक इस प्रकार आवश्यक है जिस प्रकार जीवित रहने के लिए ऑक्सीजन जरूरी हुआ करती है।