हल्द्वानी: लॉकडाउन में सक्रिय हुए चाइनीज एप ने देश को करोड़ों रुपए का चूना लगाया। किसी ने चंद दिनों में रकम दो गुनी करने का झांसा दिया तो किसी ने तुरंत लोन देने के नाम पर लोगों से ठगी की। ऐसा ही एक चाइनीज एप है पावर बैंक इंडिया, जिसने पूरे देश में 250 करोड़ रुपए से अधिक की ठगी की है और उत्तराखंड में भी तीन लोगों को अपना शिकार बनाया है। इन तीनों मामलों में मुकदमे भी दर्ज हैं।
एक आरटीआई के जरिये इस बड़े खेल का भंडाफोड़ हुआ। इस एप के जरिये राज्य में जिन लोगों को ठगी का शिकार बनाया गया, वह सभी लोग हरिद्वार के रहने वाले हैं। इसमें एक लालूपुरी लालढांग श्यामपुर हरिद्वार के रहने वाले रोहित कुमार पुत्र संतराम हैं। वर्ष 2021 की 18 मई को इनके साथ 91200 रुपए की ठगी की गई। रोहित को 15 दिन में रकम दो गुनी करने का झांसा दिया गया।
दूसरा मामला बसंत विहार जगजीतपुर कनखल हरिद्वार निवासी राहुल कुमार गोयल पुत्र ललित गोयल का है, जिनसे 72948 रुपए की ठगी की गई। इन्हें झांसा दिया गया कि अगर ये 50 हजार रुपए जमा करते हैं तो तीन दिन में इस रकम को 73000 रुपए कर दिया जाएगा।
इसी तरह तीसरा मामला रानीपुर हरिद्वार निवासी मनोज चौहान का है, जिनसे 282600 रुपए ठगे गए। जबकि आईटीआई से खुलासा हुआ है कि इस एप के जरिये देश के लगभग राज्यों में लोगों को ठगी का शिकार बनाया गया। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, लॉकडाउन के दौरान पावर बैंक ने महज चार महीने में 250 करोड़ रुपये की ठगी को अंजाम दिया। लॉकडाउन के दौरान 50 लाख से अधिक लोग इस एप को डाउनलोड कर चुके थे।
क्रिप्टो करेंसी में बदल दिए जाते थे भारतीय रुपए
हल्द्वानी : पुलिस के मुताबिक इस एप के जरिए लोगों से 15 दिन में पैसे डबल करने का झांसा देकर पैसे लिए जाते थे और उसके बाद इन पैसे को कुछ शेल कंपनियों में जमा कर दिया जाता था। ये पैसे डिजिटल पेमेंट के जरिए ट्रांसफर होते थे। इसके बाद शेल कंपनियों के अकाउंट से पैसे को क्रिप्टोकरेंसी या फिर किसी अन्य करेंसी में बदल दिया जाता और फिर उसे दूसरे देश में जमा किया जाता था।
एप में जमा करना आसान पर निकासी नामुमकिन
हल्द्वानी। पूरे मामले में एक खास बात यह है कि एप में पैसा जमा करना तो आसानी है, लेकिन निकासी लगभग नामुम्किन। इस बात का खुलासा भी तब हुआ जब लोगों ने अपने पैसे निकालने की कोशिश की। तब पता लगा कि एप में ऐसा कोई ऑप्शन ही नहीं है, जिसके जरिये पैसे री-फंड कराए जा सकें। कुछ मामलों में एप ने पीड़ितों के मोबाइल पर काम करना ही बंद कर दिया था।