शिमला: राजधानी शिमला के सबसे बड़े उपनगर संजौली को ढली कस्बे से जोड़ने वाली निर्माणाधीन डबललेन टनल का निर्माण कार्य अंतिम चरण में पहुंच गया है।
डबललेन टनल के दोनों छोर मिल गए हैं। इस कामयाबी से टनल के निर्माण में जुटे कंपनी के अधिकारियों व कामगारों के चेहरे खिल गए हैं। नई डबललेन टनल बहुत जल्द लोगों को समर्पित होगी। इस डबललेन टनल के खुलने से संजौली से ढली के बीच यातायात की समस्या से निजात मिलेगी। खासकर शिमला से सटे पर्यटन स्थलों कुफरी, नारकंडा जाने वाले पर्यटकों को जाम से नहीं जुझना पड़ेगा।
लगभग 147 मीटर लंबी इस टनल का निर्माण कार्य स्मार्ट सिटी मिशन के तहत किया जा रहा है और मिशन का शहर में यह सबसे बड़ा प्राजेक्ट है। टनल के दोनों छोर मिलाने में 170 दिन का समय लगा। इस डबललेन टनल की आधारशिला 11 मार्च को रखकर काम शुरू करवाया गया था। टनल के निर्माण पर लगभग 50 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है।
छह माह के भीतर टनल के दोनों किनारे आपस में जुड़ गए है। बीते शुक्रवार को चट्टान तोड़ने से दोनों छोर मिल गए हैं। इस टनल को ऑस्ट्रेलियन तकनीक से बनाया गया है और उम्मीद की जा रही है कि एक माह में ये टनल वाहनों की आवाजाही के लिए खोल दी जायेगी। मौजूदा समय में संजौली को ढली से जोड़ने वाली टनल टनल साल 1852 में बनी है। यह काफी जर्जर हालत में पहुंच चुकी है। टनल में अभी एकतरफा ही वाहनों की आवाजाही हो पाती है जिससे सुबह और शाम यहां लंबा जाम लगता है। अब डबललेन टनल बनने से दोनों ओर वाहनों की आवाजाही हो पाएगी।
डबललेन टनल पूरी तरह से आधुनिक तकनीक के बनाई जा रही है। टनल सुरंग के दोनों तरफ लोगों को पैदल चलने के लिए रास्ता भी बनाया जाना रहा है। डबललेन के माध्यम से टनल में गाड़ियों के आने-जाने की व्यवस्था होगी। इससे जाम से निजात मिलेगी और लोगों के समय की बचत होगी।
खास बात यह है कि मौजूद टनल अंग्रेजों की विरासत की कुछ ऐसी ही यादें संजोए हुए हैं। अंग्रेजों ने शिमला को समर कैपिटल बनाने के बाद संजौली ढली के रूप में पहली टनल का निर्माण किया था, जो आज भी ऊपरी शिमला को शिमला के साथ जोड़ने का मुख्य मार्ग है।
अंग्रेजों ने इस टनल का निर्माण कार्य 18वीं शताब्दी में आरंभ किया था। टनल की लंबाई 560 फीट है। बताया जाता है कि अंग्रेजों ने जब गोरखा हमलावरों को भगाया था और शिमला में अपने पैर जमाए थे, तो उन्होंने सबसे पहले संजौली-ढली टनल का निर्माण किया था।