धर्मः सनातन धर्म में एकादशी का विशेष महत्व माना जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, 15 मई को अपरा एकादशी है। यह पर्व हर वर्ष ज्येष्ठ माह में कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। इसे अचला एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही व्रत उपवास भी रखा जाता है।
धार्मिक मान्यता है कि एकादशी व्रत करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। साथ ही घर में सुख और समृद्धि आती है। इस दिन भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए विशेष उपाय भी किए जाते हैं।
अपरा एकादशी की तिथि पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 15 मई को देर रात 02 बजकर 46 मिनट से लेकर अगले दिन 16 मई को रात 01 बजकर 03 मिनट पर समाप्त होगी। उदया तिथि के चलते अपरा एकादशी का व्रत 15 मई को रखा जाएगा।
अपरा एकादशी के नियम
अपरा एकादशी का व्रत दो प्रकार से रखा जाता है- निर्जल व्रत और फलाहारी या जलीय व्रत. निर्जल व्रत पूर्ण रूप से स्वस्थ व्यक्ति को ही रखना चाहिए। सामान्य लोगों को फलाहारी या जलीय उपवास रखना चाहिए। इस व्रत में भगवान त्रिविक्रम की पूजा की जाती है। इस व्रत में फल और जल का भोग लगाया जाता। बेहतर होगा कि इस दिन केवल जल और फल का ही सेवन किया जाए।
अपरा एकादशी पर न करें ये गलतियां
- तामसिक आहार और बुरे विचार से दूर रहें।
- बिना भगवान कृष्ण की उपासना के दिन की शुरुआत न करें।
- मन को ज्यादा से ज्यादा ईश्वर भक्ति में लगाए रखें।
- एकादशी के दिन चावल और जड़ों में उगने वाली सब्जियों का सेवन नहीं करना चाहिए।
- एकादशी के दिन बाल और नाखून काटने से बचना चाहिए। इस दिन सुबह देर तक नहीं सोना चाहिए।
अपरा एकादशी का पूजन विधि
अपरा एकादशी पर श्रीहरि की प्रतिमा को गंगाजल स्नान कराएं. हरि को केसर, चंदन, फूल, तुलसी की माला, पीले वस्त्र ,कलावा, फल चढ़ाएं। भगवान विष्णु को खीर या दूध से बने पकवान का भोग लगाएं। धूप और दीप जलाकर पीले आसन पर बैठें। तुलसी की माला से विष्णु गायत्री मंत्र का जाप करें और विष्णु के गायत्री मंत्र ‘ऊँ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।’ का जाप करें। पूजा और मंत्र जप के बाद भगवान की धूप, दीप और कपूर से आरती करें। चरणामृत और प्रसाद ग्रहण करें।