राज्यपाल, मुख्यमंत्री और विस अध्यक्ष ने दी इगास बग्वाल की शुभकामनाएं

देहरादून: राज्यपाल, मुख्यमंत्री और विधानसभा अध्यक्ष ने प्रदेशवासियों को उत्तराखण्ड के लोकपर्व इगास बग्वाल की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि यह पर्व हमारे पूर्वजों की धरोहर व पर्वतीय संस्कृति की विरासत है।

राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (सेनि) ने उत्तराखण्ड के लोकपर्व इगास बग्वाल की पूर्व संध्या पर जारी संदेश में कहा कि यह पर्व सभी प्रदेशवासियों के जीवन में सुख, समृद्धि व खुशहाली लाएं। इगास बग्वाल उत्तराखण्ड की लोक संस्कृति व परम्पराओं का प्रतीक है। पूर्वजों की धरोहर व पर्वतीय संस्कृति की विरासत है। हमें अपने लोकपर्व व संस्कृति को संरक्षित रखने की आवश्यकता है। विशेषकर राज्य के युवावर्ग को इस दिशा में मिलकर कदम बढ़ाने चाहिए।

इगास बग्वाल मनाने के लिए पहुंचे पैतृक गांव: मुख्यमंत्री

मुख्यमंत्री ने कहा कि त्यौहार हमारी समृद्व संस्कृति की पहचान है। गढ़वाल में इगास बग्वाल और कुमाऊं में बूढ़ी दिवाली मनाया जाता है। सरकार ने त्यौहार को हर्षोल्लास से मनाने के लिए अवकाश की घोषणा की है। केवल अवकाश दने हमारी संस्कृति संरक्षित नहीं बल्कि इसे जनसहभागिता बनांए और अपने पैतृत गांव पहुंच कर परिवार के साथ त्यौहार मनाए।

लोकपर्वाे व संस्कृति को संरक्षित रखने की आवश्यकता: ऋतु खंडूड़ी

विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी भूषण ने कहा कि यह पर्व हमारे पूर्वजों की धरोहर व पर्वतीय संस्कृति की विरासत है। हमें अपने लोकपर्वाे व संस्कृति को संरक्षित रखने की आवश्यकता है।देवभूमि में इस दौरान भैलो खेलने का रिवाज है जोकि खुशियों को एक दूसरे के साथ बांटने का माध्यम है। इस दिन रक्षा बंधन पर हाथ पर बंधे रक्षासूत्र को बछड़े की पूंछ पर बांधकर मन्नत पूरी होने के लिए आशीर्वाद मांगा जाता है। परंपराओं को संजोय रखने के लिए हमें कई अहम कदम उठाने की जरूरत है ताकि हम अपनी अलग पहचान कायम रख सकें।

अपनी संस्कृति से जुड़ने के साथ-साथ उत्साह व उमंग मनाए त्योहार: मंत्री महाराज

पर्यटन, धर्मस्व एवं संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज ने उत्तराखण्ड के सांस्कृतिक लोक पर्व इगास-बग्वाल पर्व बूढ़ी दिवाली पर शुभकामनाएं देते हुए प्रदेशवासियों को अपनी संस्कृति से जुड़ने के साथ-साथ उत्साह व उमंग के साथ मनाने का अनुरोध किया है।

महाराज ने बताया कि पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान श्रीराम 14 वर्ष के वनवास के बाद सूचना गढ़वाल मंडल के पर्वतीय क्षेत्रों में दीपावली के 11 दिन बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को पहुंची। तभी से यहां दीपावली के 11 दिन बाद बूढ़ी दिवाली इगास (बगवाल) मनाई जाती है।

उन्होने कहा कि इगास, बगवाल पर्व को लेकर मान्यता है कि 17 वीं शताब्दी में गढ़वाल के प्रसिद्ध भड़ (योद्धा) वीर माधो सिंह भंडारी की सेना दुश्मनों को परास्त कर दीपावली के 11 दिन बाद जब वापस लौटी तो स्थानीय लोगों ने दीये जलाकर सैनिकों का स्वागत किया। तभी से गढ़वाल में यह लोक पर्व धूमधाम से मनाया जाने लगा।

गढ़वाल में दीपावली त्योहार के 11 दिन के पश्चात बग्वाल, इगास मनाने की प्राचीन परंपरा है। पहाड़ की लोकसंस्कृति से जुड़े इगास, बगवाल पर्व के दिन घरों की साफ-सफाई के बाद मीठे पकवान बनाए जाते हैं और देवी-देवताओं की पूजा की जाती है। कार्तिक मास में इगास, बगवाल पर्व पर शाम के समय गांव के किसी खाली खेत अथवा खलिहान में नृत्य के साथ भैलो खेला जाता है। भैलो एक प्रकार की मशाल होती है, जिसे नृत्य के दौरान घुमाया जाता है।प्रदेश सरकार ने इस लोक पर्व की महत्ता एवं पौराणिकता को देखते हुए ही इस बार बग्वाल, इगास पर (4 नवम्बर, 2022) को सार्वजनिक अवकाश घोषित किया है।