देहरादून: उत्तराखंड में लड़कियों की शादी के लिए अब कानूनी रुप से उम्र बढ़ सकती है, साथ ही उन्हें पैतृक संपत्ति में लड़कों के समान बराबरी का अधिकार दिया जा सकता है। इन दोनों ही मुद्दों पर मुख्यमंत्री धामी के निर्देश पर समान नागरिक संहिता का ड्राफ्ट तैयार कर रही विशेषज्ञ समिति गंभीरता से विचार कर रही है। समिति हलाला और इद्दत पर रोक लगाने वाले सुझावों का भी अध्ययन कर रही है। कुछ दिन पूर्व ही समिति के अध्यक्ष व सदस्यों ने नई दिल्ली में प्रवासी उत्तराखंडियों के साथ भी समान नागरिक संहिता के लिए संवाद किया था। जन संवाद में तकरीबन उसी तरह के सुझाव समिति को प्राप्त हुए जो बाकी प्रदेश से अलग-अलग क्षेत्रों में हुए जन संवादों में और ऑनलाइन व ऑफलाइन माध्यम से इकट्ठा किए गए थे।
जिनका समिति के सदस्यों ने गहन अध्ययन कर महत्वपूर्ण, जरूरी और प्रासंगिक सुझावों को छांटा है। अब इन सुझावों के आधार पर समिति ने ड्राफ्ट तैयार करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। यूसीसी की समिति इस सुझाव पर भी गंभीरता विचार कर रही है कि राज्य में शादी का पंजीकरण अनिवार्य हो। साथ ही जो व्यक्ति शादी का पंजीकरण नहीं कराएगा तो उसे सरकारी सुविधाओं का लाभ न दिया जाए। नौकरीशुदा बेटे की मौत पर पत्नी को मिलने वाले मुआवजे में वृद्ध माता-पिता के भरण पोषण की जिम्मेदारी तय हो सकती है। समिति इस सुझाव पर भी गंभीरता से विचार कर रही है। यदि पत्नी पुनर्विवाह करती है तो पति की मौत पर मिलने वाले मुआवजे में माता-पिता का हिस्सा भी हो।
यदि पत्नी की मौत होती है, उसके माता-पिता का कोई सहारा नहीं है तो उनके भरण-पोषण की जिम्मेदारी पति की हो। इन सभी सुझावों पर भी समिति गहन मंथन कर रही है। समिति प्रदेश में हलाला और इदद्त पर रोक लगाने के सुझाव पर भी विचार कर रही है। इस्लाम में महिला को तीन तलाक देने के बाद दोबारा उसी और से विवाह करने की प्रक्रिया को निकाह हलाला कहते हैं। इसके अलावा राज्य में बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया को आसान बनाने और मुस्लिम महिलाओं को गोद लेने का अधिकार मिलेगा।