धर्मशाला: तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने कहा कि आज मनुष्य के भीतर भौतिक विकास की लालसा के कारण आंतरिक विकास व शांति नहीं है। शांति प्राप्त करना दुनिया के करोड़ों लोग चाहते हैं जिसके लिए दया व करुणा के सिद्धांत को अपनाना होगा। इसके बिना शांति मिलना मुश्किल है। शैक्षणिक ढांचागत व्यवस्था में मन की शांति व आंतरिक विकास के विषय को जोड़ना चाहिए, जबकि आज जब बच्चा मां की गोद से स्कूल पहुंचता है तो वह सिर्फ और सिर्फ भौतिक विकास ही सीखता है। परमपावन दलाई लामा सोमवार को मैकलोड़गंज में मुख्य बौद्ध मठ चुगलाखंग में ताइवानी बौद्ध संघ के अनुरोध पर आचार्य धर्मकीर्ति विरचित प्रमाणवर्तिका कारिका के अध्याय दो पर तीन दिवसीय प्रवचन के प्रथम दिन बोल रहे थे। धर्मगुरू के प्रवचन सुनने के लिए तीन सौ से ज्यादा ताईवानी बौद्ध संघ के सदस्य मैकलोड़गंज पहुंचे हुए हैं।
तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने कहा कि आज कल के समय में लोग सिर्फ भौतिक विकास के बारे में विचार करते हैं, आंतरिक विकास कैसे हो इस बारे बहुत कम लोग सोचते हैं। सभी धर्म यह कहते हैं कि सभी अच्छे ह्रदय के व्यक्ति बनें। लेकिन नालंदा में अलग तरह से तर्क देकर व्याख्या की है। हमारा मन क्यों विचलित होता है और क्यों परेशान होता है। जब परिश्रम करेंगे तो आत्मसंतुष्टि प्राप्त होती है।
धर्मगुरूने कहा कि तिब्बत में भी जब अध्ययन करते थे तो उस समय लोगों की मान्यता थी कि यह पढ़ने के लिए नहीं प्रमाण सिद्धि के लिए है। इसका गहनता से अध्ययन किया है। प्रमाणवर्तिका केवल साक्षात्कार के लिए है। अगर उससे मन में परिवर्तन नहीं होता है तो ग्रंथ का आप किस प्रकार से अध्ययन करते हैं, यह इस पर निर्भर करता है। उन्होंने कहा कि तिब्बत में पहले ग्रंथों का अध्ययन नहीं करते थे, प्रमाण सिद्धि की व्याख्या कम करते थे। लेकिन प्रमाणवर्तिका के अध्ययन व अभ्यास से कई सवालों के जवाब मिलते हैं। प्रमाणवर्तिका बौद्ध प्रमाण सिद्धि धर्म चक्र व ग्रंथों को लेकर सोच विचार करने की जरूरत है, उन्हें अध्ययन करने की जरूरत है। धम्म चक्र बौद्ध चक्र का आधार है।
धर्मगुरू ने कहा कि दुख को हटाने के लिए अभ्यास करना चाहिए। बाधाओं को हटाते जाएंगे तो मन में शांति की प्राप्ति होगी। मन शांत है तो आनंद आएगा। मन में डर व भय है तो नींद भी अच्छी नहीं आएगी। अपने स्वास्थ्य मुताबिक भी देखें तो मन की शांति बहुत आवश्यक है। अगर प्रेम युक्त चित की स्थापना करें तो मन में भी शांति आएगी। शरीर को आराम प्राप्त होगा। मन व चित को शांत कर सके यही बड़ी शांति है।
धर्मगुरू दलाई लामा ने कहा कि इस दुनिया में आठ अरब के आसपास लोग हैं। सभी चाहते हैं कि उन्हें सुख की प्राप्ति हो, दुख कोई नहीं चाहता। जब हम पैदा हुए मां के सानिध्य में बड़े हुए तो भारतीय विश्वविद्यालयों के साथ एक वार्ता करें, जब मां के साथ रहते हैं और बच्चे जब स्कूल जाते हैं और स्कूल में जाकर जब भौतिक विकास को देखते हैं तो वह जान लेते हैं कि भौतिक विकास कैसे होता है। जबकि मन की शांति व मन के विकास के बारे में विकास नहीं होता। शिक्षा में यह कमी आ रही है। मन की शांति के बारे में नहीं बताया जाता। दिल्ली विवि के शिक्षकों से भी वार्ता हुई, स्कूलों में भी इस व्यवस्था को डाला जाए। पाठ्यक्रमों में भी यह बात डाली जाए कि भौतिक विकास के साथ-साथ आंतरिक विकास मन की शांति कैसे आए। भारत में देखें तो प्राचीन करुणा व अहिंसा की परंपरा कई हजार वर्ष पुरानी है। अहिंसा के सिद्धांत की बात करें तो मध्य में जाकर महात्मा गांधी ने भी अहिंसा को बढ़ावा दिया। प्रेम व करुणा से चलकर आप कई कुछ प्राप्त कर सकते हैं।