देहरादून: उत्तराखंड राज्य का गठन कई संघर्षों और प्राणों की आहुति देने के बाद नौ नवंबर 2000 को हुआ। एक सितंबर 1994 को जब पूरे उत्तराखंड से नए राज्य बनाने की आवाज उठ रही थी और खटीमा में आंदोलनकारियों की भीड़ जुलूस निकालने के लिए इकट्ठा हुई थी। तभी अचानक प्रदर्शन में गोलीबारी शुरू हो गई, जिसमें सात लोगों की मौत हो गई। यह घटना पूरे उत्तराखंड में आग की तरह फैल गई। अगले दिन यानी दो सितंबर को मसूरी में भी लोग प्रदर्शन करने के लिए एकजुट हुए थे। मसूरी में भी पुलिस की गोलीबारी में छह लोग शहीद हो गए। यह दिन उत्तराखंड के इतिहास में काला दिन के रूप में मनाया जाता है।
बेलमती चौहान (48) ग्राम खलोन, पट्टी घाट, अकोदया, टिहरी हंसा धनई (45) ग्राम बंगधार, पट्टी धारमंडल, टिहरी बलबीर सिंह नेगी (22) लक्ष्मी मिष्ठान भंडार, लाइब्रेरी, मसूरी धनपत सिंह (50) ग्राम गंगवाड़ा, पट्टी गंगवाड़स्यूं, टिहरी मदन मोहन ममगाईं (45) ग्राम नागजली, पट्टी कुलड़ी, मसूरी राय सिंह बंगारी (54) ग्राम तोडेरा, पट्टी पूर्वी भरदार, टिहरी उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान दो सितंबर 1994 को मसूरी गोली कांड में शहीद हुए राज्य आंदोलनकारियों की याद में शुक्रवार को श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया।
देवभूमि उद्योग व्यापार मंडल प्रदेश कार्यालय में आयोजित गोष्ठी में शहीदों के चित्र पर माल्यार्पण कर दो मिनट का मौन रखा। इस दौरान राज्य आंदोलनकारी हुकुम सिंह कुंवर ने कहा कि शहीदों की कुर्बानी के बाद ही राज्य का निर्माण हुआ।
आज भी शहीदों के सपनों का उत्तराखंड बनना बाकि है। इस मौके पर जगमोहन सिंह चिलवाल, घनश्याम वर्मा, तेजेंद्र सिंह चड्ढा, आफताब हुसैन ,नरेश चंद्र भट्ट, घनश्याम बिष्ट, रवि गुप्ता, बृजमोहन सिजवाली ,उमेश चंद्र बेलवाल ,नरेश चंद्र कांडपाल, रंजीत केसरवानी, दीपक रौतेला, योगेश कांडपाल, डॉ. बालम सिंह बिष्ट, भुवन तिवारी, केदार पलड़िया आदि रहे।